बाल दिवस किसी के लिए खास किसी के लिए बकवास..........
१४ नवम्बर बाल दिवस के रूप मैं मनाया जाता है.... इस दिन पंडित जवाहर लाल नेहरू जी का जन्मदिवस भी है जिसे बाल दिवस के रूप मैं मनाया जाता है... पंडित जी को बच्चो से बहुत प्यार था और वोह हमेशा बच्चो के चहरे पैर मुस्कान देखना चाहते थे...
ये तो वोह सपने थे जो हमारे देश के महापुरुष लोगो ने देखा था.....पर अब हम सच्चाई पर आते है....
और सच्चाई ये है की आज बाल दिवश किसी बच्चे के लिए खास है तो किसी बच्चे के लिए बकवाश है... कल मैं बाल दिवश के दिन जब रायपुर मैं घूम रहा था तो मुझे एक बच्चा जूस दुकान मैं मिल गया वोह वह भीक मांग रहा था मैं ने उससे पूछा बेटा तुम को मालूम है आज का दिन तुम्हारे लिए बहुत खाश है आज बाल दिवश है आज का दिन सारे बच्चो के लिए खाश होता है आज उनको इनाम मिलता है और सरे उनको प्यार करते है आज स्कूल मैं उनका सम्मान होता है आज खुद मुख्यमंत्री जी आप लोगो का सम्मान कर रहे है आप लोग तो किस्मत वाले है...आज का दिन तो बहुत खाश है वह बच्चा मेरी बात को सुनता रहा फिर मेरे को बोला ये दिन खाश नहीं है बकवाश है..... मैं ने उसकी इस राय का कारण जानना चाहा तो उसने कहा बोला हमें सम्मान नहीं हमें दो समय का खाना चाहिए हमें अच्छी शिक्षा चाहिए, हमें रहने के लिए छत चाहिए हमें सम्मान मैं प्रमाण पात्र नहीं चाहिए...
मैं ने उसकी बात सुना तो मुझहे लगा वह कोई गलत बात नहीं बोल रहा है न ही उसकी मांग गलत है... उसकी मांग भी उसके सामान बहुत छोटी सी और मासूम सी है उसे न ही लाखो रूपए चाहिए न उसे गाड़ी और बंगला चाहिए उसे वह चाहिए जिस पर उसका अधिकार है और वह उससे वंचित है....
आज सरकार को चाहिए की वह उन बच्चो की तरफ ध्यान दे ताकि उनका भविष्य भी उज्वल हो सके वह भी बचपन की सारी ख़ुशी महसूस कर सके जिन पर उनका हक़ है....मैं ने बाल श्रम स्कूल मैं एक प्रोग्राम मैं गया था मैं ने देखा वाला बहुत ही छोटे से गंदे से रूम मैं सरे बच्चे बैठे थे मैं ने उनसे पूछा की आप किस कक्षा मैं है तो किसी ने कहा मैं कक्षा पहली मैं हु तो किसी ने कहा मैं कक्षा पांचवी मैं हु तो मेरे को समझ मैं नहीं आया की आखिर एक ही कक्षा मैं सरे क्लास के बच्चे कैसे पद रहे थे क्या कक्षा पहली और कक्षा पांचवी का पाट्यक्रम एक ही होता है....
इस दिशा मैं सरकार का कोई ध्यान नहीं है जहा भारत का भविष्य टिका है.... बल्कि सरकार तो २ रूपए मैं चावल बाटने मैं लगी है ताकि उनका वोट बैंक बना रहे और लोग शराबी बने रहे ताकि उनकी सत्ता चलती रहे और लोग जागरूक न हो सके....
सरकार को चाहिए की वह इन बच्चो के उपर ध्यान ने उनको सही शिक्षा अच्छा खाना और अवाश प्रदान करे पर सरकार को सायद ये काम बेकार लगते है क्यों की बच्चे यदि शिक्षित हो जायेंगे और जागरूक हो जायेंगे तो सत्ता धारियों की दुकान बंद हो जायेगे.....
आज हम शहर मैं कोने कोने मैं बच्चो को जूते पोलिश करते, गुपचुप बेचते, चाय दुकान मैं , होटल मैं काम करते, भीख मंगाते देख सकते है ॥ पर सायद जो हमको दिखता है वह सरकार को नहीं दिखता क्यों की सरकार वही देखती है जो उसको देखना होता है पर हमें आम जनता को जागृत होना होगा तभी हम अपनी भावी पीठी के लिए एक अच्छा वातावरण तैयार कर पाएंगे...
अब समय आ गया है जब हमें सत्ता अपने(आम जनता) हाथ मैं लेनी होगी और सत्ता धारियों को उनके घर का रास्ता दिखाना होगा...
अब आम आदमी की आवाज से सुनामी आएगी॥
बड़े बड़े लोगो की सत्ता डोल जाएगी॥
अब ऐसा तूफान आएगा॥
भ्रस्ताचारियो को घर बैठायेगा॥
vaibhav agrawal
Monday, November 15, 2010
Sunday, November 14, 2010
राखी सावंत आखिर कब ख़त्म होगी फूहड़ता ...........
अभी कुछ दिन पहले ही मैं ने इमेजिन चैनल मैं एक प्रोग्राम देखा राखी सावंत का इन्शाफ़.....
जिस लड़की को बात करने का सलिखा नहीं आता आज वोह इंसाफ करने बैठी है इससे तो मुझहे कबीर जी का एक दोहा याद आता है .... "कहत कबीरा सुन भाई साधू ऐसा कलयुग आएगा हंस चुन्गेगा दाना और कंवा मोती खायेगा..."
ये दोहा राखी सावंत के प्रोगाम मैं पूरी तरह से फिट होता है...उसमें उसने एक बन्दे तो नामर्द कह कर सम्बोदिध किया है मैं पूछता हु क्या राखी सावंत कोई यंत्र लेके बैठी है क्या जो किसी मर्दानगी वोह बैठे बैठे जज कर लेती है.....
उस बन्दे की राखी सावंत ने नेशनल चैनल पैर इतनी बैज्जाती की की उस बन्दे ने आत्महत्या कर लेना जिन्दा रहने से ज्यादा बेहतर समझा.... इस आत्महत्या का जिम्मेदार आप किसे मानेगे राखी सावंत को, उस चैनल को जिसने अपनी टी र पी बदने के लिए इस तरह का प्रोग्राम बनाया या उस जनता को जो इस तरह के प्रोग्राम मैं तली बजा के उनको प्रोत्साहित करती है......
क्या भारत देश मैं सेंसर बोर्ड केवन फिल्म को नियंत्रित करने के बैठा है और टी वी चैनल वालो को छुट है की वोह जो चले कर ले भारत देश मैं उनका कोन क्या करलेगा.....
आज समय है जगाने का क्या की यदि इस को यही न रोका गया तो वह समय दूर नहीं जब टी.वी.चैनल वाले खुले आम किसी का भी मजाक उड़ाते रहेंगे और जनता और नेता मूक दर्शक बने देखते रहेंगे... क्यों की जनता कुछ कर नहीं सकती और नेता न्यूज़ चैनल के डर से कुछ करेंगे नहीं......
जागना हमें पड़ेगा हमें चाहिए की ऐसे प्रोग्राम और ऐसे चैनल का बहिस्कार करे ताकि उनको भी पता चल जाये की एक आम आदमी की ताकत क्या होती है यदि एक आम आदमी किसी को स्टार बना सकता है तो किसी को उसकी जगह दिखा भी सकता है........
बहुत हो गया अभी राखी का नखरा और बहुत हो गया अब चैनल की मन मानी......
इन सब परिस्तिधि को देख कर मेरे मन मैं कुछ पंक्ति आती है.....
"अब आ गया समय कुछ कर दिखने का, अब आ गया है समय अपनी ताकत बताने का...,
वह समझे हमें कमजोर तो गलती उनकी है, अब आ गया है समय उन्हें नींद से उठाने का....,
कर ली उन्हों ने बहुत मनमानी अपनी अब आ गया है समय उनको उनकी जगह दिखाने का.....,
उठे गी जब यलगार तो सुनामी आएगा, आम आदमी की दहाड़ से अब नेता भी डर जायेगा । ।
अभी कुछ दिन पहले ही मैं ने इमेजिन चैनल मैं एक प्रोग्राम देखा राखी सावंत का इन्शाफ़.....
जिस लड़की को बात करने का सलिखा नहीं आता आज वोह इंसाफ करने बैठी है इससे तो मुझहे कबीर जी का एक दोहा याद आता है .... "कहत कबीरा सुन भाई साधू ऐसा कलयुग आएगा हंस चुन्गेगा दाना और कंवा मोती खायेगा..."
ये दोहा राखी सावंत के प्रोगाम मैं पूरी तरह से फिट होता है...उसमें उसने एक बन्दे तो नामर्द कह कर सम्बोदिध किया है मैं पूछता हु क्या राखी सावंत कोई यंत्र लेके बैठी है क्या जो किसी मर्दानगी वोह बैठे बैठे जज कर लेती है.....
उस बन्दे की राखी सावंत ने नेशनल चैनल पैर इतनी बैज्जाती की की उस बन्दे ने आत्महत्या कर लेना जिन्दा रहने से ज्यादा बेहतर समझा.... इस आत्महत्या का जिम्मेदार आप किसे मानेगे राखी सावंत को, उस चैनल को जिसने अपनी टी र पी बदने के लिए इस तरह का प्रोग्राम बनाया या उस जनता को जो इस तरह के प्रोग्राम मैं तली बजा के उनको प्रोत्साहित करती है......
क्या भारत देश मैं सेंसर बोर्ड केवन फिल्म को नियंत्रित करने के बैठा है और टी वी चैनल वालो को छुट है की वोह जो चले कर ले भारत देश मैं उनका कोन क्या करलेगा.....
आज समय है जगाने का क्या की यदि इस को यही न रोका गया तो वह समय दूर नहीं जब टी.वी.चैनल वाले खुले आम किसी का भी मजाक उड़ाते रहेंगे और जनता और नेता मूक दर्शक बने देखते रहेंगे... क्यों की जनता कुछ कर नहीं सकती और नेता न्यूज़ चैनल के डर से कुछ करेंगे नहीं......
जागना हमें पड़ेगा हमें चाहिए की ऐसे प्रोग्राम और ऐसे चैनल का बहिस्कार करे ताकि उनको भी पता चल जाये की एक आम आदमी की ताकत क्या होती है यदि एक आम आदमी किसी को स्टार बना सकता है तो किसी को उसकी जगह दिखा भी सकता है........
बहुत हो गया अभी राखी का नखरा और बहुत हो गया अब चैनल की मन मानी......
इन सब परिस्तिधि को देख कर मेरे मन मैं कुछ पंक्ति आती है.....
"अब आ गया समय कुछ कर दिखने का, अब आ गया है समय अपनी ताकत बताने का...,
वह समझे हमें कमजोर तो गलती उनकी है, अब आ गया है समय उन्हें नींद से उठाने का....,
कर ली उन्हों ने बहुत मनमानी अपनी अब आ गया है समय उनको उनकी जगह दिखाने का.....,
उठे गी जब यलगार तो सुनामी आएगा, आम आदमी की दहाड़ से अब नेता भी डर जायेगा । ।
Tuesday, July 6, 2010
बंद आखिर कब तक बंद
बंद बंद बंद कल सुबह से ही ये नारे हेर गली कुचे मैं गूंज रहे थे। यहाँ तहा जहा नजर जाते कुछ लड़के हाथ मैं डन्डे और मुह मैं जय सिया राम लिए घूम रहे थे ,उनको देख के ऐसा लगा मानो इस बंद के आयोजन करता राम भगवान तो नहीं है। ऐसा दृश्य आप को यदा कदा हेर महीने मैं देखने को मिल जायेगा बदलेंगे तो लड़के उनके मुह के नारे जय सिया राम के बदले, जय हो हो जायेगा तो कभी मायावती जिन्दा बाद तो कभी कुछ और बस नारे बदलते है पर बेचारी बेबस जनता वही रहती है। जो चुप चाप बस सहती जाती है और हमारी पोलिसे ओउर प्रशासन मूक दर्शक बने बस तमाशा देखते रहते है। ये बेबस जनता जाये तो जाये कहा आखिर इस बंद का आयोजन तो खुद प्रशासन ही करता है और पोलिसे का उनको सपोर्ट होता है। जो इस जनता के पास एक ही रास्ता है की बस अत्याचा सहते रहो और गाँधी जी के रस्ते पर चलते रहो की कोई एक गल पर मरे तो दूसरा गल आगे करदो। किसी न किसी दिन तो मरने वाली को सरम आएगी पर यहाँ तो लगता है की बंद करने वाले सरम को अपने तहखाने मैं बंदी बना के रखे है । ताकि की गलती से भी उनके पास न आजाये। अब समय है की इस जनता को जागने का ताकि बंद के नाम से उनपर अत्याचार न हो। पर न जाने ये कब जागेगी और जगाने वाला गाँधी कब आएगा।
हवा बदलने के खातिर आंधी की आज जरुरत है।
लपटों पर बैठी इस दुनिया को गाँधी की आज जरुरत है.
हवा बदलने के खातिर आंधी की आज जरुरत है।
लपटों पर बैठी इस दुनिया को गाँधी की आज जरुरत है.
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