Tuesday, July 6, 2010

बंद आखिर कब तक बंद

बंद बंद बंद कल सुबह से ही ये नारे हेर गली कुचे मैं गूंज रहे थे। यहाँ तहा जहा नजर जाते कुछ लड़के हाथ मैं डन्डे और मुह मैं जय सिया राम लिए घूम रहे थे ,उनको देख के ऐसा लगा मानो इस बंद के आयोजन करता राम भगवान तो नहीं है। ऐसा दृश्य आप को यदा कदा हेर महीने मैं देखने को मिल जायेगा बदलेंगे तो लड़के उनके मुह के नारे जय सिया राम के बदले, जय हो हो जायेगा तो कभी मायावती जिन्दा बाद तो कभी कुछ और बस नारे बदलते है पर बेचारी बेबस जनता वही रहती है। जो चुप चाप बस सहती जाती है और हमारी पोलिसे ओउर प्रशासन मूक दर्शक बने बस तमाशा देखते रहते है। ये बेबस जनता जाये तो जाये कहा आखिर इस बंद का आयोजन तो खुद प्रशासन ही करता है और पोलिसे का उनको सपोर्ट होता है। जो इस जनता के पास एक ही रास्ता है की बस अत्याचा सहते रहो और गाँधी जी के रस्ते पर चलते रहो की कोई एक गल पर मरे तो दूसरा गल आगे करदो। किसी न किसी दिन तो मरने वाली को सरम आएगी पर यहाँ तो लगता है की बंद करने वाले सरम को अपने तहखाने मैं बंदी बना के रखे है । ताकि की गलती से भी उनके पास न आजाये। अब समय है की इस जनता को जागने का ताकि बंद के नाम से उनपर अत्याचार न हो। पर न जाने ये कब जागेगी और जगाने वाला गाँधी कब आएगा।
हवा बदलने के खातिर आंधी की आज जरुरत है।

लपटों पर बैठी इस दुनिया को गाँधी की आज जरुरत है.